चिनटेल्स पैराडाइसो: 20 परिवारों ने किया पलायन, बोले- हादसे के बाद दहशत में हैं पत्नी-बच्चे, रात में रोने लगते हैं
सार
डी-टॉवर की 17वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 1701 में रहने वाले भूपेंद्र भारद्वाज को बी टॉवर का 1501 नंबर फ्लैट मिला है। घटना के बाद से उनकी पत्नी मधु और छोटा बेटा कार्तिक बहुत डरे हुए हैं।
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पत्नी-बच्चे दहशत में हैं, रात में रोने लगते हैं
डी-टॉवर की 17वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 1701 में रहने वाले भूपेंद्र भारद्वाज को बी टॉवर का 1501 नंबर फ्लैट मिला है। घटना के बाद से उनकी पत्नी मधु और छोटा बेटा कार्तिक बहुत डरे हुए हैं। अक्सर रात में दोनों ही रोने लगते हैं। कहीं बी टॉवर में भी ऐसा भयावह हादसा न हो जाए। बड़ा बेटा राहुल भी डरा हुआ है। दोनों बेटों का स्कूल जाना है और खुद उनका शेयर बाजार में ब्रोकिंग का काम रुका हुआ है। 2016 में उन्होंने यहां फ्लैट लिया था, जिसको चुनिंदा आइटमों से सजाने में पूरा एक साल लगा था। 2017 में यहां शिफ्ट हुए और अब फिर से दूसरा घर सजाने का बोझ आ पड़ा है। पूरा परिवार जल्द से जल्द यहां से निकलना चाहता है।
पिता रोज दिल्ली से आते हैं, जल्द ही यहां से जाएंगे
डी टॉवर की 18वीं मंजिल के 1602 नंबर फ्लैट में रहने वाली संजना को बी- टॉवर में 103 नंबर का फ्लैट दिया गया है। घटना के बाद से संजना के पिता राजेश रोजाना दिल्ली से यहां आते हैं, ताकि किसी तरह से बेटी का घर दोबारा ठीक से बसा सकें। संजना के ससुर हादसे के बाद से बहुत परेशान हैं। पांच लोगों के परिवार ने सवा साल पहले यहां बड़े मन से घर लिया और सजाया था, लेकिन एक झटके में सब उजड़ गया। अब उन्हें भी अपने रिफंड का इंतजार है, लेकिन चिंता उन 50 लाख रुपयों की भी है, जो इंटीरियर में खर्च हो गए। अभी तक इसकी भरपाई का कोई सटीक जवाब नहीं दिया जा रहा है। ये परिवार भी यहां से दूसरी जगह जाने की तैयारी कर रहा है।
शुद्ध हवा के लिए आए थे, जान के लाले पड़ गए
सी टॉवर के 803 नंबर फ्लैट में रहने वाले सरकारी स्कूल समलखा दिल्ली के शिक्षक एसके सिंह भी बहुत परेशान हैं। वह कहते हैं कि दिल्ली के बसंत कुंज में खतरनाक वायु प्रदूषण से बचने के लिए वर्ष 2019 में उन्होंने यहां घर बनाया था, लेकिन दो साल में ही यहां जान के लाले पड़ गए हैं। बोले वह रोजाना अरुण श्रीवास्तव के साथ टहलने और स्वीमिंग करने जाते थे। दोनों परिवारों में घरेलू संबंध बन गए थे। श्रीवास्तव परिवार के जाने के बाद उनके फ्लैट से गुजरते वक्त रूह तक कांप जाती है। कैसे उन्होंने मलबे में दबे होने के बाद जिंदगी की लड़ाई जीती लेकिन अपनी आंखों के सामने ही पत्नी सुनीता को खो दिया। अब यहां रहने का मन नहीं है।
अलमारी मिली तो बेड नहीं, तंग आ गया हूं
डी-टॉवर के फ्लैट नंबर 1004 के निवासी प्रॉपर्टी का कारोबार करने वाले संजय बंसल को जे टॉवर में 703 नंबर का फ्लैट दिया गया है। चार दिन पहले उनको फ्लैट दिया गया। अलमारी तो मिली लेकिन बेड अभी तक नहीं मिला है। किचन का काम अधूरा ही है। उन्होंने बताया कि वह खुद 300 और 400 वर्गगज में लोगों को मकान बना कर देते हैं, लेकिन ऐसा घटिया निर्माण उन्होंने कभी नहीं देखा। अब केवल एक ही मांग है कि आज के बाजार भाव से फ्लैट की पूरी लागत, रजिस्ट्री की लागत, इंटीरियर डेकोरेशन का खर्चा ब्याज के साथ दिया जाए। जिससे वह किसी दूसरी जगह फ्लैट ले सकें।
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